थिरकते पाँव (बाल कविता)
थिरकते पाँव (बाल कविता)
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(1)
सवा साल की हँसती गाती है मस्ताती रोज रिआ
टीवी पर गाना सुन सबको नाच दिखाती रोज रिआ
(2)
खुशमिजाज है जैसे ही संगीत कान में पड़ता
थिरका करते पाँव देह को है थिरकाती रोज रिआ
(3)
यह है मन की मौज खुशी अंदर की बाहर आती
नाच-नाच कर जैसे खुद का दिल बहलाती रोज रिआ
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर( उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 545 1