*थियोसोफी के अनुसार मृत्यु के बाद का जीवन*
थियोसोफी के अनुसार मृत्यु के बाद का जीवन
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थियोसोफी इस विचार में विश्वास रखती है कि हमारा जीवन मृत्यु के बाद समाप्त नहीं होता। मृत्यु के साथ ही शरीर तो नष्ट हो जाता है, लेकिन जीवन की यात्रा जारी रहती है। हम फिर से जन्म लेते हैं और इसी धरती पर जीवन व्यतीत करते हैं।
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पुनर्जन्म: एक वास्तविकता
पुनर्जन्म एक वास्तविकता है। यह उतना ही सत्य है, जितना हमारा वर्तमान जीवन सत्य होता है। पुनर्जन्म केवल इसलिए संभव होता है क्योंकि हमारे शरीर में एक अजर और अमर तत्व विद्यमान रहता है। इसे हम आत्मा कहते हैं। यह अद्भुत जीवन-तत्व मृत्यु के बाद भी नष्ट नहीं होता। यही आत्मा बार-बार जन्म लेती है और शरीर धारण करके धरती पर लौटती है। दिलचस्प बात यह है कि वह एक ही आत्मा अनेक बार शरीर तो धारण करती है, लेकिन हर बार अपने पिछले जन्म की घटनाओं का उसे कोई स्मरण नहीं रहता।
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कोरे कागज पर नई शब्दावली
आत्मा एक प्रकार से कोरा कागज लेकर आती है और उस पर नई शब्दावली लिखी जाती है। रहस्य की बात यह भी है कि यह नई शब्दावली व्यक्ति के पिछले जन्म के कार्यों के दंड पर आधारित होती है। हर जन्म में व्यक्ति इस तरह अपने पिछले जन्म के अपराधों का दंड भोगता भी है और कुछ नई गलतियॉं करके आगामी जन्म के लिए फिर से अपनी नियति तय कर लेता है। पुनर्जन्म और कर्म का सिद्धांत इतना कठोर तथा सुनिश्चित है कि इसमें रत्ती भर भी पक्षपात अथवा त्रुटि की संभावना नहीं होती।
पिछले जन्मों की याद किसी को भी नहीं रहती, लेकिन इस कारण से ही हम पिछले जन्मों के अस्तित्व को नकार नहीं सकते। अपवाद रूप में ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिनको अपने पिछले जन्म की घटनाऍं याद हुआ करती थीं। बुद्ध उनमें से एक हैं। उन्होंने अपने पिछले तमाम जन्मों की घटनाओं को देखा और महसूस किया था।
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पिछले जन्म का चलचित्र
सामान्य रूप से जीवन-क्रम में तो व्यक्ति को इस बात का बोध होना कठिन है कि इस जन्म में जो जीवन वह बिता रहा है, वह किस प्रकार उसके पिछले जन्म के कार्यों का परिणाम है ? लेकिन यह एक सत्य है कि मृत्यु के अंतिम क्षणों में व्यक्ति के सामने अपना पिछला जन्म पूरी तरह साकार हो जाता है। पिछले जन्म की एक-एक घटना वह चलचित्र की भॉंति देखता है और उसके बाद जब वह अपने इस समाप्त हो रहे जन्म के काल-क्रम से उसकी तुलना करता है, तब वह सचमुच समझ जाता है कि इस जन्म में उसे जो कुछ भोगने को मिला ;वह वास्तव में उसके साथ किया गया न्याय था।
जीवन-काल में अनेक बार व्यक्ति को ऐसा लगता है कि जो कष्ट उसे मिल रहा है, वह अकारण प्राप्त हो रहा है। लेकिन कर्म-सिद्धांत के अनुसार उसे इस जीवन में वही प्राप्त होता है, जो पिछले जन्म में उसके द्वारा किए गए कर्म का दंड होता है।
प्रत्येक जन्म के बाद व्यक्ति को देवचन अथवा स्वर्ग में कुछ समय बिताने के लिए प्राप्त होता है । यह उन कष्टों को भोगने के बाद उसे प्राप्त होने वाला विश्राम काल है, जो उसने अभी हाल ही के जन्म में भोगे थे।
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देवचन अथवा स्वर्ग में निवास की अवधि
स्वर्ग में निवास की अवधि एक से डेढ़ हजार वर्ष की भी हो सकती है। पुनर्जन्म तत्काल भी संभव है और कुछ समय बाद भी यह घटित होता है। यह बार-बार जन्म लेना और मरना ही पुनर्जन्म का चक्र है।
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पुराने पात्र और नए चेहरे
स्वर्ग में अपने आनंदपूर्ण जीवन का समय बिताने के बाद जब व्यक्ति फिर से धरती पर अपने पिछले जन्म के कार्यों के फलस्वरुप कष्टों को भोगने के लिए भेजा जाता है, तब यह कार्य बड़ी ही जटिल संरचना के द्वारा संपन्न होता है। इसमें अनेक व्यक्तियों के भाग्य और उनके भाग्यफल आपस में इस तरह गुॅंथ जाते हैं कि सबको सब प्रकार से यथोचित दंड और पुरस्कार मिलता है। लेकिन वह मूल रूप से पिछले जन्म की आत्माएं होते हुए भी क्योंकि उनकी पिछले जन्म की याददाश्त समाप्त हो चुकी होती है, चेहरा भी बदल जाता है; ऐसे में वह एक दूसरे को पहचान नहीं पाते। पिछले जन्म के पात्र अगले जन्मों में हू-बहू वही लौट कर आते हैं। एक नई पटकथा लिखी जाती है। नितांत नवीन परिदृश्य निर्मित होता है और नए चेहरों के साथ पुरानी आत्माएं पिछले जन्म के कार्यों का दंड देने अथवा पुरस्कार लेने के लिए उपस्थित होती हैं ।जिसका जिसने बुरा किया है, वह अगले जन्म में उसी के हाथों दंड प्राप्त करता है। नियति का यह निर्णय बड़ा ही विचित्र और अचरज से भरा हुआ देखने में आता है। लेकिन कई बार जब व्यक्ति यह समझ नहीं पता कि उसके साथ अमुक व्यक्ति ने बुरा क्यों किया अथवा उसे कष्ट क्यों दिया तो उसके पीछे पुनर्जन्म का सिद्धांत और पिछले जन्मों में किए गए गलत कार्यों के दंड की अचूक व्यवस्था ही जिम्मेदार होती है।
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नियति की विवशता
जन्म के समय मनुष्य को जो परिस्थितियां प्राप्त होती हैं, वह एक प्रकार से उसकी नियति होती है। यह उसके कर्मों के फलस्वरुप उसे प्राप्त हुआ करती हैं ।इसे बदला नहीं जा सकता। अपने पिछले जन्म की घटनाएं उसे याद नहीं रहतीं लेकिन ईश्वरीय व्यवस्था में उसके द्वारा किए गए एक-एक कर्म की छाप बहीखाते में अंकित हो जाती है।
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क्षमा का महत्व
पुनर्जन्म में व्यक्ति को अपने किए की सजा अवश्य मिलती है। यहां तक कि अगर कोई स्वयं अपने हाथों से किसी को अतिरिक्त रूप से दंडित करने का कार्य करता है, तब वह स्वयं को दंड का भागी बना देता है। इसलिए दंड देने का कार्य ईश्वरीय व्यवस्था पर छोड़ देना चाहिए तथा अपनी ओर से सबको क्षमा देकर ही हम पाप से बच सकते हैं। इसीलिए बुराई के बदले अच्छाई करने में ही व्यक्ति का सौभाग्य निहित है।
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मृतक से संवाद
मृत्यु के बाद व्यक्ति का संपर्क पीछे छूट गए संसार से समाप्त हो जाता है। ऐसा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आत्मा को स्वर्ग के आनंद की प्राप्ति तभी संभव है जब वह धरती पर बिताए गए अपने पिछले जीवन को विस्मृत कर दे। लेकिन अपवाद रूप में धरती पर जीवित व्यक्तियों द्वारा मृतक से संवाद की संभावनाओं को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। किंतु यह संवाद मृत्यु के कुछ ही दिन तक ही संभव है और जब तक व्यक्ति देवचन अथवा स्वर्ग में नहीं पहुंच जाता; केवल तभी तक यह संभव हो सकता है।
मृत व्यक्तियों से संवाद की एक स्थिति यह भी है कि अत्यंत दुर्लभ कोटि के संत अथवा महापुरुष स्वर्ग के आनंद को छोड़कर अदृश्य रूप से कुछ गिने-चुने व्यक्तियों के माध्यम से इस पृथ्वी के जीवित व्यक्तियों के हित में प्रेरणायें देते हैं। लेकिन यह असामान्य में भी गहरी असामान्य स्थिति होती है।
बहुत असाधारण परिस्थितियों में किसी का अत्यंत संवेदनशील शरीर मृत-आत्मा के पास उच्च लोक तक पहुंचने में समर्थ हो जाता है। उस समय जीवित व्यक्ति और मृत आत्मा के बीच संवाद संभव है।
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स्वार्थ से मुक्ति आवश्यक
थियोस्फी एक ऐसे जीवन जीने की सलाह देती है, जिसमें स्वार्थ भाव नदारत हो और व्यक्ति दूसरों की भलाई के लिए तथा सबके कल्याण के लिए कार्य करे। अगर कोई उसके साथ बुरा भी करे, तब भी बदला लेने का भाव दिमाग में न आए। इसी से एक सुखमय संसार की स्थापना संभव है । इसी पद्धति से हम जन्म और मृत्यु के भयंकर चक्र से भी मुक्ति पा सकते हैं। जब हमारी आत्मा परमात्मा से मिल जाती है, तब जीवन का लक्ष्य पूर्ण हो जाता है । इसे बूंद के समुद्र में मिलने की संज्ञा दी जा सकती है। उसके बाद न पुनर्जन्म रहता है और न जन्मों का दुष्चक्र ही बचता है।
(यह लेख थियोस्फी की संस्थापक मैडम एच.पी. ब्लेवैट्स्की की पुस्तक “की टू थिओसोफी” का रघुवीर शरण गुप्ता द्वारा किए गए अनुवाद “थियोसोफी की कुंजिका” प्रथम हिंदी संस्करण 1998 के आधार पर तैयार किया गया है।)
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लेखक : रवि प्रकाश पुत्र श्री राम प्रकाश सर्राफ
बाजार सर्राफा (निकट मिस्टन गंज) रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615 451