था करम माँ का जो बदकार नहीं होने दिया
——–ग़ज़ल—–
मैंने दिल इश्क़ में बीमार नहीं होने दिया
यानी जुल्फों में गिरफ़्तार नहीं होने दिया
माँ ने बख़्शी है दुआओं की मुझे जो दौलत
उसने इस दौर में लाचार नहीं होने दिया
ईद रमजान या होली हो या हो दीवाली
इस मरज़ ने कोई त्योहार नहीं होने दिया
नोटबन्दी तो कभी होती है तालाबंदी
इसने ही देश को गुलज़ार नहीं होने दिया
आँधियों ने तो चराग़ों को जकड़ रक्खा था
पर ख़ुदा ने उसे मिस्मार नहीं होने दिया
मुझको दुनिया ने तो भटकाया बहुत था लेकिन
था करम माँ का जो बदकार नहीं होने नहीं दिया
दौरे-हाज़िर में न रोज़ी है न रुज़गार मगर
दोस्तों ने मुझे नादार नहीं होने दिया
सच के ही राह पे मेरी ये कलम चलती है
झूठ का ख़ुद को परस्तार नहीं होने दिया
फ़िक्र तो ज़ेहन में ग़ुरबत की चुभा करती थी
फिर भी कुछ बात थी मयख़्वार नहीं होने दिया
बह्र का इल्म ये आहंग-ओ-ग़ज़ल बारीक़ी
मुझको इन सबने सुख़नकार नहीं होने दिया
अब तलक आइना बन कर के जिया हूँ प्रीतम
ख़ुद को इस दौर का अख़बार नहीं होने दिया
प्रीतम श्रावस्तवी
श्रावस्ती [उ०प्र०]
9559926244