थक चुकी ये ज़िन्दगी
ज़िन्दगी की शम्अ को ज़ब्ते ग़म बुझा न दे
थक चुकी ये ज़िन्दगी मुझको हौसला न दे
दानादिल को है पता हाले-दिल ग़रीब का
सब्र तू बनाए रख सब्र से वो क्या न दे
क्या मुझे पता नहीं प्यार की सज़ा है क्या
क़ैद दे न दे मगर हिज्र की सज़ा न दे
आज भी है मुझको डर, तुझ से ऐ अना! मेरी
जश्ने-ज़िन्दगी में तू मौत को भुला न दे
आग आग आग है हर किसी ज़ुबान पर
आग को दबाए रख आग को हवा न दे
– शिवकुमार ‘बिलगरामी’