थक गया हूँ माँ।
हर साँस में वेदना की वृष्टि,
मेरी आत्मा को भिगो जाती है।
समय की आग में जलते जलते,
थक गया हूँ माँ।
हर ख़्वाब के टूटने की आवाज़,
मेरी सिसकियों से दब जाती है।
खुद को चुप कराते कराते,
थक गया हूँ माँ।
हर रात तेरी गोद की याद,
मेरे जख्मों को सहलाती है।
दुनिया के सामने मुस्कुराते मुस्कुराते,
थक गया हूँ माँ।
हर जंग में पराजय की आकृति,
मेरे अस्तित्व को तोड़ जाती है।
खुद से ही लड़ते लड़ते,
थक गया हूँ माँ।
– सिद्धांत शर्मा