थकान
मैं हुई प्रवासी दूर मंजिल की,
कान्हा थकान हरो जीवन की।
बीता यौवन इंतज़ार में,
भ्रमित वचनों के खुमार में।
मौन हुई वीणा मधुवन की,
मुरझाई देख कली भी मन की ।
तेरी मधुर बांसुरी नींद भरी है,
नहीं भोर रही पर सांझ उतरी है ।
शांत हुई बुलबुल जीवन की,
नहीं कूकती कोयल अब नीलम की।
बुझती जाती हूं थकान से थककर,
इस उदास जीवन के पथ पर ।
पतझर छाया बसंत ऊपर,
बता सुमन खिलेंगे फिर से क्यूकर।
सुन,जब सपनों में शेष रह गई बस
सुधियां हीं चंदन वन की ।
हुई मैं तो प्रवासी दूर मंजिल की,
कान्हा थकान हरो जीवन की।
नीलम शर्मा