तख़्ती
शब्द:तख़्ती
तख़्ती पे तख्ती, तख्ती पे दाना
कल की छुटटी परसो को आना’’
दादी ने सिखाया था ये गाना
खेल खेल में सिखाया गया लिखना।
आज सिसक सिसक खत्म हो गई
मेरी प्यारी तख़्ती की कहानी
अब तो बस रह गई दादी की कहानी
हो गई तख़्ती की बात अब पुरानी।
लकड़ी की पट्टी की वो कहानी
अब बस बीते वर्षों की बनी कहानी
मैं तो बचपन मे थी तख़्ती की दीवानी
पर अब तो बची न उसकी कोई निशानी।
मुल्तानी मिट्टी से तख़्ती को पोतना
सोंधी सोंधी उसकी खुशबू का महकना
उंगलियों से नाप हाशिये का बनाना
आज बाते याद कर आँखों का भीग जाना।
नवयुग आया बीता पुराना जमाना
आज तो बच्चे के हाथ पेंसिल थमाना
तभी तो लिखाई का निकला दिवाला
खो गई आज तख़्ती पर शब्दो की माला।
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद