त्रिवेणी संगम
त्रिवेणी संगम,,
कहे विजय अपन लेख में, नारी नारी रह जाओ ।
गंगा जमुना सरस्वती, त्रिवेणी संगम बन जाओ।।
सास बहू और ननद, त्रिमूर्ति सुंदर नारी हो ।
नारी नारी को न सताओ, तुम दुर्गा चंडी काली हो।।
मैंने देखा दुनिया में, नागिन नागिन की दुश्मन होती
एक नारी नारी के कारण ,आज नारी ,नारी है रोती।।
सास भी नारी बहू भी नारी ,नारी दर्द समझ जाओ ।
गंगा जमुना सरस्वती त्रिवेणी संगम बन जाओ।।
सास बहू ननद देवरानी ,सब लोगन नारी हैं ।
बन जाए संगम तो, पुरुष पर भी भारी हैं ।।
होता देख अत्याचार कवि विजय तो रोता है।
नारी का दुख दाता केवल नारी ही होता है ।।
अपराध हुआ बहू से यदि, तो बेटी समझ सह जाओ ।
गंगा यमुना सरस्वती, त्रिवेणी संगम बन जाओ।।
आग लगाती भाई को बहन,सास घी डालती है।
पाक पवित्र बहू को भी, घर से बाहर निकालती है ।।
धर्म संकट पर फसा पुरुष ,पत्नी का सुनूं या मां बहन के।
गिड़गिड़ाते,अश्रु बहाते बहु ,मांग रही है भीख रहम के।
धिक्कार रही नारी जीवन ,पापी तन सह जाओ।
गंगा यमुना सरस्वती ,त्रिवेणी संगम बन जाओ।
हमने देखा दुनिया में, नारी नारी से नफरत करती ।
यमराज से भी ज्यादा ,सांसु मां से डरती।।
याद आते ही सासू मां का, काल का ज्वाला आ गया ।
ननंद क्या आई मायका ,घर में आफत छा गया।।
ननंद की बात न पूछो,आग की चिंगारी है
सासु मां के सामने,बहु तो भिखारिन है।।
सास बहु और ननंद एक धारा में बह जाओ।
गंगा यमुना सरस्वती त्रिवेणी संगम बन जाओ।।