त्रिभंगी छंद
#त्रिभंगी छंद द्वार
त्रिभंगी ३२ मात्राओं का छंद है जिसके हर पद की गति तीन बार भंग होती है
प्रथम यति १० मात्रा पर, दूसरी ८ मात्रा पर, तीसरी ८ मात्रा पर तथा चौथी ६ मात्रा पर हो। हर पदांत में गुरु हो
त्रिभंगी के चौकल ७ मानें या ८ जगण का प्रयोग सभी में वर्जित है।
. त्रिभंगी के तीसरे चरण के अंत में लघु या गुरु कोई भी मात्रा हो सकती है किन्तु कुशल कवियों ने सभी पदों के तीसरे चरण की मात्रा एक सी रखी है।
दो दो पदों के अंत में तुकांत हो , चारों पदों की तुकांत होने या न होने का उल्लेख कहीं नहीं मिला।
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मेरा प्रयास
जय जय हरि देवा , तेरी सेवा , देती मेवा , दानी को |
जब ज्ञान बखाना, गीता माना, मिली ज्ञानता , ज्ञानी को ||
जय जय गिरधारी , लीला न्यारी , सूरत प्यारी , उर धारें |
हे नटवर नागर , लीला सागर , तुझको पाकर , सब हारें ||
माँ जय जय भारती , तेरी आरती , तिरंग धारती , हम जाने |
बेटे बलिदानी , अमिट कहानी , कुंदन पानी , जग माने ||
भारत का बच्चा , जानो सच्चा , मूल न कच्चा , दीखा है ||
जय बंदे गाना , रहे तराना , आगे आना , सीखा है |
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जब गोरी चलती , हलचल मचती , चौराहों में , राहों में |
गोरी जब हँसती , बगिया कहती , है फूलों की , बाहों में ||
पग पायल बजती , महफिल सजती , बाजारों की , बातों में |
मुखड़ा भी चमके , नथनी दमके , हिल हिल के भी , रातों में ||
© सृजन – सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य , दर्शन शास्त्र
जतारा (टीकमगढ़)म०प्र०