त्रासदी
(युवा मित्र के अकस्मात दुखद निधन पर अर्पित काव्य-श्रद्धांजलि )
त्रासदी/
उस क्षण
कैसा लगता है ?
जब वृक्ष
बनने से
पहले ही
उखड़ जाए
कोई रसीले
फलों बाला पौधा
और
टूट जाए
उम्मीद माली
के जीने की ।
कैसा लगता है
उस पल ?
जब किसी
बच्चे से
खेलते ही खेलते
धरा पर
गिर पड़े
मिट्टी की गुड़िया ।
जैसे माली
ख़ुद उतारू हो
उजाड़ने पर
अपनी ही बगिया ।
ठीक इसी तरह
गहन त्रासदी
होती है ,
जब भरे- पूरे
परिवार को
छोड़कर
अकस्मात
अंतरिक्ष में
खो जाती है
किसी तरुण
की अँगड़ाई ,
देकर सबको
असहनीय-सी
स्मृतियों की
तनहाई ।
– ईश्वर दयाल गोस्वामी ।
कवि एवं शिक्षक ।