त्याग
त्याग
कर्म तो कभी तज सकते नहीं,
कर्मफल का त्याग करो बंदे ।
अंतकाल राम मुख आवत नाहिं ,
पहले से राम जपो बंदे…
इच्छाएँ अनंत,तेरे वश में नहीं ,
चाहे वन में रहो,चाहे घर में रहो ।
परमानंद कभी, तृष्णा में नहीं ,
इस बुराई से सदा लड़ो बंदे…
कर्म तो कभी तज सकते नहीं…
डरना कभी मुश्किल से नहीं ,
चाहे सागर हो या पहाड़ हो।
किस्मत यदि, संग देता नहीं ,
काबिलियत से सदा डटो बंदे…
कर्म तो कभी तज सकते नहीं…
दर दर कभी भटकना नहीं ,
चाहे अवस्था तेरा कोई भी हो।
शिव से बड़ा सत्य होता नहीं ,
सत्य के लिए सदा लड़ो बंदे…
कर्म तो कभी तज सकते नहीं…
पतवार यदि कर थामा नहीं ,
चाहे मझधार में हो या साहिल पे हो।
प्रभु सांसो में यदि बसाया नहीं ,
फिर जीवन सफल,नहीं होवत बंदे…
कर्म तो कभी तज सकते नहीं…
मौलिक एवं स्वरचित
मनोज कुमार कर्ण