त्याग के सारी भाषाएँ
त्याग के सारी भाषाएँ,
बस ब्रज की बोली बोलूँगी।
श्याम तुम्हारी नगरी में,
मैं जोगन बन कर घूमूँगी।
निस-दिन तेरी मुरली की,
मुझे तान सुनाई देती है।
जहाँ कहीं भी देखूँ मैं,
तेरी छवि दिखाई देती है।
युगों से प्यासी आँखों की,
प्यास बुझाने आ जाओ।
साँझ ढले जमुना तीरे,
दरस दिखाने आ जाओ।
मधुबन का हर फूल मेरे,
पाँव में शूल चुभाता है।
आन मिलो मुझ से ‘कान्हा’,
अब विरह सहा न जाता है।
त्रिशिका श्रीवास्तव धरा
कानपुर (उत्तर प्रदेश)