तो मैं राम ना होती….?
अगर मुझे अन्याय सहना आता
तो मैं राम ना होती
अगर मुझे क्रोध में भी चुप रहना आता
तो मैं राम ना होती ?
अगर मुझे विपरीत स्थिति को स्वीकारना आता
तो मैं राम ना होती
अगर मुझे गलत को माफ़ करना आता
तो मैं राम ना होती ?
अगर मुझे केवट के पैर पखारना आता
तो मैं राम ना होती
अगर मुझे शबरी के जूठे बेर खाना आता
तो मैं राम ना होती ?
अगर मुझे बड़ों की आज्ञा पर शीश झुकाना आता
तो मैं राम ना होती
अगर मुझे चौदह साल वनवास में रहना आता
तो मैं राम ना होती ?
अगर मुझे अपनों से पहले प्रजा का ध्यान रखना आता
तो मैं राम ना होती
अगर मुझे प्रजा के लिए अपनों को त्यागना आता
तो मैं राम ना होती ?
अगर मुझे बेहिसाब संयम आता
तो मैं राम ना होती
अगर मुझे देवता होकर इंसान रूप में रहना आता
तो मैं राम ना होती ?
राम कहना आसान है
बनना आसान नहीं है राम
अगर होता आसान
तो मैं राम ना होती ?
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )