तो तुम पुकारती क्यूॅं हो….?
तो तुम पुकारती क्यूॅं हो….?
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जब तुम्हें बात नहीं करना रहता !
तो तुम मुझे पुकारती क्यूॅं हो….?
हूॅं मैं तेरा इंतज़ार करता रहता !
दूर तुम चली जाती क्यूॅं हो….??
तेरे मन में क्या है ये तू साफ-साफ बतलाना !
यदि हाॅं में उत्तर हो तो पास ज़रा चली आना !
और यदि उत्तर ना में हो तो लौट के तू नहीं आना !
पर कभी बीच मझधार में छोड़ के मुझे ना जाना !
या फिर ना कभी ऐसे – वैसे बहाने ही तू बनाना !!
तुम औरतों की आदतें सदैव कुछ ऐसी ही होती !
तेरी ऑंखोंं में पढ़ पाना उतनी आसां नहीं होती !
दिल में तेरे कुछ एवं दिमाग में कुछ और ही होती !
खुद को खुली किताब के रूप में पेश तू ना कर पाती !
बंद किताबों के हर पृष्ठ पे अलग-अलग ही बातें होती !
इसीलिए पढ़ने वाले पाठक एक शब्द समझ ना पाते !
अच्छे से कुछ समझना चाहते तो और ही उलझ जाते !
पूरी किताब जो समझ लेते वे तो पागल ही हो जाते !!
हम मर्दों की व्यथा भी तुम कभी-कभार तो समझो !
भले तुम अक्लमंद ज़्यादा हो पर हमें मूर्ख ना समझो !
हम सब तो हर पल तेरी ही फिक्र हैं किया करते !
जीने को कुछ और नहीं, बस तुझपे ही जीते मरते !
तुम सब की ही पहरेदारी में दिन-रात हैं जागा करते !
बाहर जब होता हूॅं तो चैन से इक पल भी नहीं कटते !
पर तुम औरतें मर्दों की जो तनिक भी फिक्र किया करती !
तो मर्द भी ग़मों को अपने भूल तेरे इर्द-गिर्द ही नाचा करते !!
जो भी दिल में हो तेरे उसे ही मानस-पटल पे खोलो !
अंदर कुछ, बाहर कुछ व जुबां पे कुछ और ना बोलो !
इतने विशाल संसार में अपनी ख़ास पहचान तो बनालो !
आधी आबादी के करीब हो,आधी जिम्मेदारी तो निभालो !
तुम महिलाएं पुरुषों से तालमेल बिठाके यह संसार चला लो !
पुरुष होने में उनकी क्या ग़लती,ये ज़ेहन में अच्छे से बसा लो!
प्रकृति का सृजन दोनों ही हैं,कुछ ईश्वर के प्रसाद तुम पा लो !
महिला व पुरुष दोनों ही मिलकर नए-नए कीर्तिमान बना लो!
स्वरचित एवं मौलिक ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 06-08-2021.
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