तो क्या हुआ… !?
तो क्या हुआ…!?
यूँ तो बेटियों के नाम किये हैँ कई हथियार,
महज़ किताबों मे हैँ तो क्या हुआ !
यूँ तो रोज़ निकल पड़ते हैँ मोमबत्तियां हाथों मे लिए,
रौशन उनके घर ना कर सके तो क्या हुआ !
यूँ तो काला कोट पहचान है इंसाफ़ की,
पलड़ा झूठ का भारी हो गया तो क्या हुआ !
यूँ तो ख़बरों का बाज़ार बेशुमार सजा है,
सच के भेष मे झूठ खड़ा है तो क्या हुआ !
यूँ तो सुरक्षा के दावे हर रोज़ होते हैँ कभी ताक़त तो कभी कुर्सी क लिए,
दरिंदगी का खौफ तक ना मिटा सके तो क्या हुआ !
यूँ तो इंसाफ के फरियादी बहोत से हैं,
लक्ष्यहीन जंग के ग़ुलाम हैँ तो क्या हुआ !
यूँ तो दुर्गा लक्ष्मी का रूप मानी जाती हैँ बेटियां,
शक्ति के महत्ता से अंजान हैँ तो क्या हुआ !
-रुपाली भारद्वाज