तो आओ घसीटो हमें !
रोज – रोज
थोड़ा – थोड़ा
मारने में क्या मज़ा है ?
मैं तो बोलती हूँ उठाओ अपना हाथ,
ले जाओ हमारे बालों तक और घसीटो हमें,
राज महल से सड़क तक,
हमारी पूरी जमात को
सभी औरतों को एक साथ
हमारी नाक काटने कि ज़रूरत नहीं,
हमारे नाकों में लोहे का सरिया डालो और घसीटो
फिर ले जाओ किसी टीले तक
और किसी खाई में धकेल दो
ताकि तुम्हारा परुष होने का दम्भ फले- फूले
ताकि मनु के जायज़ पुत्र कहला सको
ताकि हमारी लाशों पे राजनीती कर सको।
क्यों कि राष्ट्र और देश कुर्बानी मांगता है
और तुम हो पूँजीवाद के पैरोकार,
राष्ट्र और देश के नाम पे कुर्बानी चाहिए,
हम है न, क़ुर्बानी के लिए,
दे दो हमारी कुर्बानी
देश बचेगा कैसे,
बिना कुर्बानी के।
क़ुर्बानी के बिना तीन हजार सालों में नहीं बचा
तो अब कहाँ बचेगा।
राजनीती के लिए और क्या -क्या करोगे ?
बारी -बारी हमारी बोटियाँ नोचने से अच्छा है।
सारे गिद्धों को इकठा करो,
और छोड़ दो पूरी औरत जात पे,
जिस में मैं भी होऊ
और तुम्हारी माँ बहन बेटी भी हो।
सारा टंटा ही खत्म हो जाए,
फिर रोटी और बेटी
बचने का चककर ही खत्म हो जाय
फिर रोटी भी खुद बनाना,
और बच्चे भी खुद ही पैदा करना।
मनु के बंशजों, हमारी अस्थियों से
बनाना राजमहल,
भोगना सारी बिलासिता,
और एक दूसरे को ही नोचते रहना।
क्यों कि हम तो बचेंगी नहीं।
और तुम्हारी रजनीति की भूख,मिटेगी नहीं।
तुम तो इतने नीच हो कि बेटियों कि लुटती इज्जत
उसका जिन्दा जलना सब
रामराज्य की छोटी मोटी घटना हो गई ।
तो आओ घसीटो हमें !
***
25 -12 -2018
मुग्धा सिद्धार्थ