तोहर स्नेह
तू जखने मोर अँगनवा रहलहुँ,
सगरो घर उजियार भऽ गेलऽ।
रूप-रस केर अन्हरिया राति में,
जइसे चन्ना फगुनहटिया छहरलऽ।
मधुर बोली तोहर, सनेस सुनल,
प्राणक संग बान्हलऽ मोर मन।
मुरली केर तान जेना बाँचै पिया,
तहिना तू बाँचलऽ मोर प्रान धन।
कहि रहल जखन बसन्त केर बयार,
सुगंध सँ जकरे व्याकुल भऽ गेलऽ।
आखिर कतेक कहब तोहर बड़ाई,
काव्यात्म सन हियरा में बसलऽ।
तोहर स्नेह जेना जलहि केर लहर,
सुख आ शान्ति भरलऽ हमर घर।
बिनु तोरे जिनगी नीरस भऽ जाए,
तोहर नामे मीत, संसार प्रियतमा।
—-श्रीहर्ष आचार्य—-