तोड़ो नहीं जोड़ो
जात पात पर भड़काने बालो
अगड़े पिछड़े पर लड़वाने बालों
डिजाइनर खबरें गढ़ने बालों
विदेशी चंदा खाने बालों
अभिव्यक्ति के नाम से
विष वमन करने बालों
धर्म जाति का भाड़ चलाने वालों
समाज को अब और ना बांटो
नफरत नहीं, प्रेम भी बांटो
वोट की फसलें अब ना काटो
बांट रहे साहित्य संस्कृति
करता हूं विनम्र यह विनती
मुख से जहर और न उगलो
द्वेष बांट रहे हो किसको?
कमजोर कर रहे हो किसको?
क्यों तोड़ रहे हो तुम समाज को?
हो सके तो जन-जन को जोड़ो
देश की एकता अखंडता ना तोड़ो
सुरेश कुमार चतुर्वेदी