तोटक छंद
[01/09/2020] तोटक छंद, प्रथम प्रयास,
सलगा सलगा सलगा सलगा
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बिखरे जब ते मन के सपने ।
पथ में कुछ यूं बिछड़े अपने ।।
अब जांउ कहा यह सोच रहा ।
मन ही मन में खुद रीझ रहा ।।
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मत देर करो सुन लो विनती ।
अब आस नहीं पथ की दिखती ।।
यह जीवन व्यर्थ हुआ अपना ।
जब भूल गए हरि को जपना ।।
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अब आस लगी मुरली धर से ।
दुःख दूर करो हमरे मन से ।।
कर दो सच आज सभी सपने ।
फिर साथ चले न चले अपने ।।
अभिनव मिश्रा,