तेरे साथ होने के भरम को जिंदा हम रखते हैं
सभी एक दूसरे के हाल पे रोते हमें दिखते हैं
सब के सब यहां बेहाल ही हम को दिखते हैं !
इक बस आप के आंगन से आती थी चांदनी छन के
अब वहां भी अना की ऊंची दीवार ही हमें दिखते हैं !
अपने ऑंखों में जो खाब सजाए थे हमने संदली
आज पलकों के छांव में धुलते हुए हमें दिखते है !
अपने ही हाथ पे रख कर अपना ही दूजा हाथ
आप के साथ होने के भरम को जिंदा हम रखते हैं !
कभी बन्द खिड़की पे उतर आता है चुपके से चाॅंद
उसकी चांदनी में हम अपने जज़्बातों को लिखते हैं !
लब के बन्द दरवाज़े के पीछे इक ज़बान है बन्धा हुआ सा
खुलते ही आग उगलता है इस लिए हम हार कर लिखते हैं !
~ सिद्धार्थ