तेरे संग एक प्याला चाय की जुस्तजू रखता था
तेरे संग एक प्याला चाय की जुस्तजू रखता था
तुमसे जाने क्या-क्या कहने की गुफ्तगू रखता था
आज समझा हूँ मैं ख्वाब और हकीकत में फर्क क्या है
तुम्हारे लिए तो खुदा से भी लड़ने की आरजू रखता था
तेरे संग एक प्याला चाय की जुस्तजू रखता था
तुमसे जाने क्या-क्या कहने की गुफ्तगू रखता था
आज समझा हूँ मैं ख्वाब और हकीकत में फर्क क्या है
तुम्हारे लिए तो खुदा से भी लड़ने की आरजू रखता था