तेरे प्रथम चरण
तेरे प्रथम चरण की आहटे याद है मुझें।
हृदय हरषाया बहुत जब मैने पाया तुझे।
कृष्ण से घुंघरालें वो केश बिसरे नही मुझें।
अंतस प्रसन्न हुआ तुझे पाकर।
सुलाया कभी तुझे लौरी गाकर।
मधुर-मधुर किल्कारियां गूँजी अँगना मेरे।
मुस्कान हरदम सजी खिली रही लबों पर मेरे।
तेरी चाल पर रिझायी उतारी नजर कभी।
बजा-बजा ताली चलाया लगाया गले कभी।
मन में हजारों मोती बिखरें मुसकान पर तेरी।
सौ जन्म भी कुर्बान मुस्कान पर तेरी।
ईश्वर सबको दे ऐसी सन्तान ।
जग दिलाया मुझे माँ का मान।
सुधा भारद्वाज
विकासनगर