तेरे ख़त
तेरे दिये वो ख़त, मैंने रखे हैं संभाल के।
जिनमें रखा था तूने , दिल निकाल के।
पढ़ता हूं जब भी मैं ,तेरे वफ़ा के वो वादे
समझ आया है अब ,क्या थे तेरे इरादे।
यकीं नहीं होता कि , करेगी तू बेवफाई
मेरे कंधे इश्क की ,होगी जग हंसाई।
कसूर तेरा नहीं ,सारा कसूर बस मेरा था
वादे तेरे थे झूठे , मगर यकीं तो मेरा था।
तेरी दिलनशीं वो बातें,तेरी झूठी वो कसमें
मंझधार छोड़ मुझे, ग़ैर से निभाई रस्में।
सुरिंदर कौर