तेरी याद…..!
तेरी यादों का जो सहारा है, उनके संग जीता और मरता हूं
एक भटका हुआ सा राही हूँ, फिक्रमंद रास्तों पे चलता हूं
प्यास अकुला उठी है मन में मेरे
हाय मैं कैसे सहूँ, हाय मैं कैसे कहूँ
पीर इतनी उठी है दिल में मेरे
हाय मैं कैसे जियूँ, हाय मैं कैसे मरूँ
मौन के साज ने सँवारा है, दर्द मैं गाता यूं ही फिरता हूं
तुझसे होकर जुदा सा पंक्षी मैं, विरह के बादलों में उड़ता हूं
ये रवानी ये जवानी है फकत चार दिन
बातें बेमानी सी कहानी कहें रात–दिन
मेहमाँ सी बनके आती तिथि जो ये बंजारन
खुशी की भीख माँगती खुशी से हर दिन
दिल में झुलसा हुआ अंगारा है, जिसमें बुझबुझ के मैं सुलगता हूं
राख बन–बन के इन फिज़ाओं में, तेरी खुशबू सा मैं महकता हूं
करह के गिरह बंधे रैनों में
आँखों में किसके दिखूं, पलकों में किसके बसूं
आसूँ बहतें हैं जो इन नैनों से
इन्हें जो रोप–रोप करके, मैं दिन रात पिऊँ
जबह लहू की जो धारा है, उसमें मैं डूबता सा बहता हूं
मन तुझे सौंपकर ये तन जो लिए, तेरी तलाश में मैं रहता हूं
–कुंवर सर्वेंद्र विक्रम सिंह✍️
*ये मेरी स्वरचित रचना है
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