तेरी याद मुझको सताती बहुत है ।
तेरी याद मुझको सताती बहुत है ।
जलाती है पल पल विरह की अगन में
जियूं कैसे तुम विन अकेले मगन मैं
छोड़ दूँ क्यों न सब कुछ तुम्हारी लगन में
मेरी मुश्किलों को बढाती बहुत है
तेरी याद मुझको सताती बहुत है।
तुम्हीं जब नहीं साथ मेरे रहोगे
न दिल की सुनोगे न दिल की कहोगे
ये जज़्बात अपने छुपाते फिरोगे
घनीभूत पीड़ा जगाती बहुत है
तेरी याद मुझको सताती बहुत है ।
आ भी जाओ कि सावन की सोंधी झड़ी है
पास बैठो कहां की तुम्हें अब पड़ी है
मिली उम्र बस ये घड़ी दो घड़ी है
जिन्दगी सबको ये आजमाती बहुत है
तेरी याद मुझको सताती बहुत है ।
अनुराग दीक्षित