तेरी याद अक्सर आती है
तेरी याद अक्सर आती है
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आप तो आते कभी नहीं
तेरी याद अक्सर आती है
गम-ए -जुदाई उपहार दी
तन्हा मैं,नींद नहीं आती है
जब याद तेरी बैचेन बनाए
मेरी जान ही चली जाती है
मंझदार छोड़ कर चले गए
किश्ती नजर नहीं आती है
बेसहारा हुए हम तुम बिना
शरण नजर नहीं आती है
एकांत में होता एकाकीपन
मेरी रूह भी मचल जाती है
तुम्हें जितना भूलाना चाहें
तेरी याद बेइंतहा आती है
चाह कर भी, ना भूल सकें
तेरी याद रग- रग समाई है
दिन तो कैसे कट जाता है
रात ओर लंबी हो जाती है
मुलाकातें हो सकती नहीं
बेदर्द तन्हाई बढ़ जाती है
मनसीरत उपासना में लीन
स्मृति घंटियाँ बज जाती हैं
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)