तेरी यादों का सावन ( रफी की याद में…..)
एक वह बरसात थी ,
जिसमें भीगा करता था तन मन ।
एक वह बरसात भी थी ,
जिसमें भीगा था कफ़न ,
तब से कितनी बरसते आई और चली गई ,
मगर कम ना हुआ तेरा गम ,
और अब यह बरसात है ऐ रफी !
अब भी इन आंखों से तेरी ,
यादों का बरसता है सावन ।