तेरी यादें
तुझ जैसी तेरी यादें भी जालिम, तड़पाने चली आती है।
जब देखती है तन्हाई में तो मुझको, सताने चली आती है।।
गर कभी खुश हो भी लूं, जा भूले से किसी महफ़िल में।
बेतकल्लुफ वो बेवफ़ा फिर मुझे, रुलाने चली आती है।।
भूल जाता जख़्मों को जो कभी, खाये थे तेरे प्यार में।
पर जाने उन घावों को क्यों नासूर, बनाने चली आती है।।
थक हार “चिद्रूप”आख़री नींद, कब का सो जाता मगर।
वो अंधेरी रातो में चराग जलाने के, बहाने चली आती है।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २५/१०/२०१८)