तेरी- मेरी एक कहानी
तेरी-मेरी एक कहानी —
विरह की देखो तोप दगी है
दिल में बादल के चोट लगी है !
नेत्रमय हो गया तन सारा
अश्कों की कैसी झड़ी लगी है !
अंबर से धरती तक आकर
ढूँढ रहा है अपना साजन
कण-कण से वो पूछ रहा है
छुपा कहाँ मेरा मनभावन !
बिजली चमकी दिल में गोया
आशा की एक किरन जगी है !
रोके नहीं रुकते हैं आँसू
गला ये रुँध- रुँध जाता है
दिल से उमड़कर गम का सागर
जग को हरा कर जाता है
सुख देगी यह दुख की सीमा
कोरी नहीं ये दिल की लगी है !
आओ रे बदरा ! मेरे भाई
मुझपे भी ये विपदा आई
मैं भी तुम- सी गम की मारी
छोड़ चला मुझको हरजाई
तेरी- मेरी है एक कहानी
निष्ठुर प्रिय के प्रेम पगी है !
रखो दुख को दिल में छुपाकर
अग जग में यूँ करो न उजागर
क्या रहेगा फिर पास तुम्हारे
अश्कों की सारी पूंजी गँवाकर
कभी भी तुम्हारा साथ न देगी
दुनिया किसी की नहीं सगी है !
जलमय जिसका जीवन सारा
जले तन उसका ज्यों अंगारा
दुनिया क्या जाने उसकी पीर
दिखाए वो कैसे रिदय को चीर
भटकाए जो दरिया को दर-दर
अहा, कैसी अनूठी तिश्नगी है !
– डॉ० सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ० प्र० )