तेरी महिमा
तेरी महिमा बड़ी निराली,
सबके जेब में रहने वाली।
एक हाथ कर दिया नकारा,
दूजे से ही काम हो सारा।
क्या ठेला या ठेलिया वाला,
रिक्शा, गाड़ी, तांगा वाला।
नौकर, चाकर या हो महरी,
पुलिस, दरोगा या हो प्रहरी।
सबकी गर्दन ये झुकवाई
आपस में धक्के खिलवाई।
कितनों के टांगें तुड़वाए
कितनों ने तो जान गवाएं।
बदल गए अब अच्छे अच्छे
कितनों के तो छूटे बच्चे।
कितनों के छूटे सामान
पूरे हुए नहीं अरमान।
बाहर की क्या बात करें हम
घर में भी न साथ रहें हम।
सबकी नजरें जमी हुई है
मानों सांसें थमी हुई है।
मिलना जुलना हुआ है बंद
व्हाट्सएप अब हुआ बुलंद।
चाहे जानो या ना जानो
फेसबुक पर अपना मानो।
बड़े बुजुर्ग अब सोच रहे हैं
कैसा दौर है, कोस रहे हैं।
कोई किसी की अब न सुनता
लाख रहो चाहे सिर धुनता।
भागीरथ प्रसाद