तेरी बातों में सच्चाई नहीं है
ग़ज़ल (बह्र-हज़ज मुसद्दस महज़ूफ)
तेरी बातों में सच्चाई नहीं है।
कि मुझमें कुछ भी अच्छाई नहीं है।।
यकीं कैसे दिलायेगा तू ख़ुद को।
तेरा दिल मेरा शैदाई नहीं है।।
दिया इल्ज़ाम तूने आइने पर।
तेरे रूख़ पर ही रानाई नहीं।।
क़ुसूर इसमें उजालों का नहीं कुछ।
तेरी आंखों में बीनाई नहीं है।।
चुराता है निगाहें मुझसे तू यूं।
कि मुझसे ज्यों शनासाई नहीं है।।
समझता है बहुत नादान मुझको।
मगर तुझमें ही दानाई नहीं है।।
अगर बदनाम तू रिश्ता करेगा।
तो क्या तेरी ये रुसवाई नहीं है।।
अंधेरों ने मुझे क्या घेरा जबसे।
कि मेरे साथ परछाई नहीं है।।
तुझे नज़रे झुका कर देखता हूं।
तेरे क़द में जो ऊंचाई नहीं है।।
“अनीस” अब कौन देगा राह तुझको।
अगर तुझमें तवानाई नहीं है।।
– © अनीस शाह “अनीस”