तेरी फितरत के कांच के टुकड़े उम्र भर चुभते रहे
यह तेरी फितरत ही तो थी
जिसके बेहिसाब कांच के टुकड़े
मुझे उम्र भर चुभते रहे
ऐसे के साथ कोई रिश्ता निभाये भी तो
कैसे
मेरी आस का तारा तो अब डूबने वाला है
मेरे जीवन की सांझ होने को है
मौत का बुलावा आने ही वाला है
मेरी सारी आशाओं पर पानी फिर
गया
एक छोटी सी ख्वाहिश ही तो यह
मन में थी कि
तेरे मन का मोती कभी
मेरे मन की तरफ भी लपके और
मेरी उम्मीद के दीपक में
तेरी चाहत का कोई तो रंग भर दे लेकिन
इन सारी तमन्नाओं पर
पानी फिर गया
जिन्दगी खत्म होने की कगार पर
आई लेकिन
तेरी फितरत जैसी थी
वैसी ही आखिरी दम तक रही
यह मेरी लाख कोशिशों के बावजूद
एक छटांक भी न बदली।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001