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14 Jan 2021 · 1 min read

तेरी द्रौपदी को तो कृष्न

आज अपने मन को मैं समझाऊं कैसे
भटक रही दर दर जा शान्ति पाऊं कैसे

ह्र्दय भी कांप जाता सुनकर ये आवाज
आकर मेरे प्रिय सखा बचाओ मेरी लाज

बहन तेरी सिसकती तुझे हाथ जोड़ बुलाये
दुराचारी इस भरी सभा में मेरी लाज उड़ाए

जाने कैसी विपत्तियों ने आकर मुझको घेरा
तेरी द्रोपदी को तो कृष्ण यहाँ पे सहारा तेरा

मेरी साड़ी के पल्लू की राखी स्वीकार करो
मुरली मनोहर तुम आके आज मेरें कष्ट हरों

सुना मैंने जब शत्रु को भी राखी भिजवाई है
रक्षा करने दौड़ पड़ें बने जो राखी बंद भाई है

आज भारतवर्ष की बहु आशा से रही पुकार
व्यथित है मेरा ह्र्दय दे दे अपना दर्श साकार

हम दोनों है गोविंदा एक ही युग की संतान
मैं हूँ तेरी सखी पंचाली तु मेरा कृष्ण भगवां

चला के सुदर्शन मिटा दे तिमिर और अज्ञान
मिटा दे आज कौरवों का तू आके अभिमान

अशोक की टूटी फूटी स्तुति को करो स्वीकार
देश प्रेम का मतवाला नहीं चाहता पुरूस्कार

अशोक सपड़ा हमदर्द की क़लम से

1 Like · 1 Comment · 216 Views
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