तेरी चाहत हमारी फितरत
सच बोलना हमारी फितरत में है,
पर क्या करूँ तुम्हें खोने से डरता हूँ इसलिये कुछ नहीं कहता हूँ ।
हम जानते हैं हमारा मिलन तुमसे शायद अब नहीं होगा,
पर क्या करूँ मैं मन ही मन तुमसे प्यार जो कर बैठा हूँ ।।
मैं डरता हूँ तुम्हें खोने से पर अपनी फितरत से भी लाचार हूँ,
क्योंकि मैं तुमसे बेइंतहा मोहब्बत करता हूँ ।
अब गुस्ताखियाँ इन आँखों की है या मेरे मन की मुझे नहीं पता,
पर सच यही है कि मैं तुम्हें अपना बनाना चाहता हूँ ।।
मैं छुपाना चाहता था तुमसे ये सब बातें,
मगर कुछ छुपाया नहीं जाता हमसे ।
मैं क्या करूँ अपनी फितरत से लाचार हूँ,
इसीलिये सब सच सच बताना चाहता हूँ तुमसे,
इसीलिए सब सच सच बताने को तैयार हूँ ।।
तुम्हें हमारी फितरत हो या ना हो,
लेकिन तुम हमारी फितरत हो ।
तुम्हारी फितरत हमें हमेशा लगी रहती है,
अब इसका तुम्हें खबर हो या ना हो ।।
मैं भलिभाँति जानता हूँ इस खबर से बेखबर होगी तुम,
पर इस दिल को अब तेरी आदत लग चुकी है ।
ना जाने कौन सा जादू कर दिया इस दिल पे तूने,
अब इस दिल में हर वक्त तुम्हारा ही ख्याल आता है ।।
तेरी चाहत में हम इस कदर डूब गये हैं,
कि ना चाहकर भी तुझे अपना मान लिये हैं ।
तेरी हरेक अदा से रूबरू हो गया हूँ,
इसीलिये मैं तुझपे इतना फिदा हो गया हूँ ।।
तेरी हरेक यादों को अपने सीने में महफूज कर दिया,
ना जाने क्यों मेरा दिल तेरी सूरत पे इतना फिसल गया ।
तेरी साँसों में कैसे इतना समा गया मैं,
कि तेरी हरेक आहट को अब पहचान गया मैं ।।
तेरी मुहब्बत की बातें केवल अपने नैनों से किया मैं,
बस तेरी लबों की मुस्कान देख तुझे इतना चाहने लगा मैं ।
इतनी भीड़ में ना जाने क्यों तुझपे ही फिदा हो गया मैं,
ना जाने क्यों बस तेरी ओर ही खींचा चला आया मैं ।।
हमें समझ नहीं आता अब,
तूने ये कैसा जादू चलाई है ।
आग तो लगा दी तूने इस दिल में,
पर लगी इस आग को नहीं बुझाई है ।।
मुझे इस ख्वाबों के दहलीज पर तूने,
पहला कदम रखने का इजाजत जो दी नहीं होती ।
तो मेरे अर्न्तमन में कभी तुम्हारे लिए,
प्रेम का ये पहला दीप जलाने की हिम्मत भी नहीं होती ।।
मैं तुझे अपना बनाने का चाहत रखता हूँ जरूर,
क्योंकि सच्चा प्रेम करना हमारी फितरत है ।
पर क्या करूँ किसी को ठोकर मारकर किसी और से प्यार करना,
यह भी तो हमारी फितरत नहीं है हुजूर ।।
कवि – मन मोहन कृष्ण
तारीख – 09/07/2023
समय – 04 : 40 ( सुबह )