तेरी चाहत का कैदी
हमारे दरमियां फासले इतने बढ़ चुकें है
की अब वक्त देकर भी ना मिटा पाऊँगा
बनकर रहूंगा सदा तेरी चाहत का कैदी
करीब किसी और को ना बिठा पाऊँगा
चाहता हूँ तुम्हे दिल-ए-जाँ से आज भी
चाहकर भी वो चाहत ना भुला पाऊँगा
समुंदर जैसा गहरा कर बैठे इश्क़ हम
जिसका अंदाजा भी ना लगा पाऊँगा
करती हो वादा ना छोड़कर जाने का
तो दिल के दर्द का ना सजा पाऊँगा
जाने से पहले चंद लम्हें साये में रख
दर्द-ए-दिल का फिर ना दवा पाऊँगा
© प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला-महासमुन्द (छःग)