तेरा शहर छोड़ जायेगे
शीर्षक:तेरा शहर छोड़ जायेगे
प्राणों की चिंता किसको है प्राण बचाने जाते हैं
यह बात निराली है सुनिए प्राण गँवाने जाते हैं
आज तो दुखी हो,हम तेरा शहर छोड़ जाते हैं
फिर से चलो सब,अपने गाँव में ही बस जाते है।
बीवी बच्चों की ही खातिर गांवों से यह आए थे
बीवी बच्चों की ही खातिर गांवों को यह जाते हैं
आज तो दुखी हो,हम तेरा शहर छोड़ जाते हैं
फिर से चलो सब,अपने गाँव में ही बस जाते है।
रोजी रोटी के लाले थे गांवों में हैरान रहे
सूखी रोटी भी मिल न सकी आफत में प्राण रहे
आज तो दुखी हो,हम तेरा शहर छोड़ जाते हैं
फिर से चलो सब,अपने गाँव में ही बस जाते है।
चलते ट्रक में बस चढ़ जाएं जान बचाएं कैसे भी
मजबूर हुआ इंसान कितना सोच रही मैं बात यही
आज तो दुखी हो,हम तेरा शहर छोड़ जाते हैं
फिर से चलो सब,अपने गाँव में ही बस जाते है।
ऐसे प्राण बचेंगे कैसे सोचा किस ने आज यहां
हम गांव पहुंच जायेंगे सपना मन में आज यहां
आज तो दुखी हो,हम तेरा शहर छोड़ जाते हैं
फिर से चलो सब,अपने गाँव में ही बस जाते है।
बड़ी बुरी है आग पेट की आज समझ में आया है
बच्चों की प्यासी आंखों में यूं चांद उतर आया है
आज तो दुखी हो,हम तेरा शहर छोड़ जाते हैं
फिर से चलो सब,अपने गाँव में ही बस जाते है।
जब पहुंचेंगे ठौर ठिकाने सांस चैन की लेंगे
हम आधी रोटी में खुश हो फिर शहर भुला देंगे
आज तो दुखी हो,हम तेरा शहर छोड़ जाते हैं
फिर से चलो सब,अपने गाँव में ही बस जाते है।
डॉ मंजु सैनी
गाजियाबाद
घोषणा:स्वरचित