तेरा यह खत मोहब्बत की अलामत है निशानी है
तेरा यह खत मोहब्बत की अ़लामत है निशानी है।
कि इसमें हर घड़ी आती महक इक जा़फरानी है।
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मेरी तन्हाई में भी तेरी यादें साथ रहती हैं।
तुम्हारा साथ ही मेरे मोहब्बत की कहानी है।
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यकीं कैसे दिलाऊं मैं वफा का ए मेरे हमदम।
तुम्हारे बिन तो लगता है मेरी नाखु़श जवानी है।
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जला डालो हमारे खत मगर यह भी बता दीजे।
जो मेरे दिल में यादें हैं उसे कैसे मिटानी है।
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तमन्ना है मेरे दिल की मैं ख़्वाहिश आप से कह दूं।
तुम्हारी जु़ल्फ के साए में मुझको शब बितानी है।
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बड़ी मासूम सी अपनी मोहब्बत कितनी पाकीज़ा।
वफा की, इश्क़ की और प्यार की यह तर्जुमानी है।
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जितनी मिल गई है जिंदगी आराम से जी लो।
कि इक दिन हर किसी को मौत से यारी निभानी है।
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गुजा़रो मुस्कुरा कर ज़िंदगी,शिकवे गिले छोड़ो।
बस चार दिन की चांदनी यह जिंदगानी है।
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गुलों से कह दो राहों में हम अपना दिल बिछाएंगे।
ज़माना आज देखेगा यह कैसी मेज़बानी है।
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हमें अब ज़ुल्म की तारीकियों में तुम ना उलझाओ।
मोहब्बत की शमा मुझको अंधेरों में जलानी है।
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लगा दो जान की बाजी़ तुम अपने मुल्को मिल्लत पर।
तुम्हारे हाथ में यारों चमन की पासबानी है।
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“सगी़र” हम कह ना पाएंगे ज़ुबां से और होटों से।
मगर आंखें हैं यह ग़म्माज़ जिसमें सिर्फ पानी है।
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डॉक्टर सगीर अहमद सिद्दीकी खैरा बाजार बहराइच