तेरा कहना माँ ! बहुत याद आता है
तेरा कहना माँ! बहुत याद आता है
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तेरी आँखें खुलते ही,रोज सुबह सबको जगाना
“चल फ्रेश हो जा’ तेरा कहना,तब जैसे लगता था ताना
भईया से झगडे़ पर,तेरा रसोई से चिल्लाना
सरदर्द होते हुए भी ‘चल तेरी पसंद का नाश्ता बनाया है’
तेरा यह कहना,माँ!बहुत याद आता है|
आटा सने हाथों से,स्कूल जाते तेरा टाटा कहना
कम नम्बर आया तो ‘कलछी से पीटुँगी’,ये रटा करना
एक भी दिन न खाऊँ तो तेरा सारा घर सर पर उठा लेना
‘किसी ने कुछ कहा क्या’,’तबियत तो ठीक है”कुछ तो बता दे न!’
तेरा यह कहना माँ!बहुत याद आता है|
हर फरमाईश पर तुझसे,मेरा मुँह फुलाना
‘नही हो पाएगा इस महीने’,कहकर भी दिलाना
मेरे बालों से जूँ निकालने के बहाने,बरामदे में बिठाना
और अंत मे मेरी चोटी बनाकर,’समझ गई न!’
तेरा यह कहना माँ!बहुत याद आता है|
तब लगता था, युँ ही बोलती हैं, माँओं काम ही है घर-गृहस्थी बताना
अकबर-बाबर,अल्फा-बीटा,noun- pronoun
रोज़मर्रा कितनी काम आई,ये तो अब पता चला न!
‘सिखाने को हमेशा मै न रहुँगी,अच्छे से सीखना’-
तेरा यह कहना माँ!बहुत याद आता है।
@anita mahto@