तेरा इक दिवाना हूँ
तेरा इक दिवाना हूँ क़ाफ़िर नहीं हूँ
असल में जो मैं हूँ वो जाहिर नहीं हूँ
जुबाँ हूँ अदा-ए-फिजा हूँ फ़ना हूँ
यक़ीनन मैं जो हूँ क्यों आखिर नहीं हूँ
जहाँ तक तिरा साथ मुझको चलूँगा
युँ कुछ वक्त का मैं मुसाफ़िर नहीं हूँ
लिखूँगा मैं लिखता नया ही रहूँगा
थकूँ राह में ऐसा शाइर नहीं हूँ
खबरदार हूँ वक्त से अपने यूँ तो
कहीं से कभी गैर-हाजिर नहीं हूँ
लगा लो न सीने से मुझको अभी तुम
झुकाओ न सिर देव-मंदिर नहीं हूँ
कदरदान हूँ मैं मुहब्बत का तेरे
किसी मुल्क़ का तो मैं आमिर नहीं हूँ
डा. सुनीता सिंह ‘सुधा’
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