तेरा अक्स
वो लहरों सी बहती रही
वो हवाओँ सी चलती रही
बिना कोई शौर के भी एक शौर सा है
शांत समंदर का तुफानी छोर सा है
गहराई इसकी भर के आँखों में
मुस्कान लिये अपनी हर बातों में
छोड कर निशां तेरे अक्स का
दुर जो जाती तुम हो
सागर को भी बहुत याद आती तुम हो।