तेजाब
रास्ते मे लड़को का झुंड खड़ा उसे ताक रहा था।
लड़कों की गंदी नजर उस के बदन को घूर रही थी।
खुद को दुप्पटे से ढंकती हुयी,वो जैसे ही निकलने को आगे बढ़ी एक लड़के ने उस का दुप्पटा छीन लिया।
रेखा ने विरोध करने के लिए दूसरे लड़के(रवि) को खींच कर थप्पड़ मार दिया और बोली कि जितना समय लड़कियों के पीछे बर्बाद करते हो, कुछ पढ़ने में लगाया होता तो इंसान बन जाते।
उस की इस बात से रवि की मर्दानगी को ठेस लगी और वो बोला तुम क्या कहना चाहती हो???
क्या मैं इंसान नही??
तुम्हें जानवर नजर आता हूँ क्या मैं?
रेखा ने गुस्से में घूर कर कहा,
हाँ तुम सब के सब जानवर ही बन गये हो। मुझे पढ़ाई पूरी कर लेने दो फिर तुम्हारे दिमाग का इलाज करुँगी मैं ।
ये कह कर रेखा अपना दुप्पटा ले कॉलेज चली गयी।
रास्ते मे खड़े रवि से उस के साथियों ने कहा कि इस का कुछ करना होगा, वरना बेज्जती कर देंगी।
रवि बाजार गया और तेजाब की बॉटल खरीद कर रेखा के आने का इंतजार करने लगा।
शाम को 4 बजे और रोज़ की तरह हँसती चहकती रेखा, रवि के षड़यंत्र से अनभिज्ञ चली आ रही थी।
सामने से एक तेज़ बाइक आती दिखी। जब तक रेखा को कुछ समझ मे आता।
वो दर्द से चीख रही थी।
रवि तेज़ बाइक से रेखा पर सारा तेजाब फेंक के फ़रार हो चुका था।
रेखा दर्द से तड़पती हुयी लोगो से मदद के लिए गुहार कर रही थी।
तेजाब ने ना केवल जिस्म को जलाया था, किन्तु उस के आत्मविश्वास को भी जला दिया था।
औरत होने की सजा उस के तन और मन दोनो को चुकानी पड़ी।
क्यों एक मर्द की मर्दानगी औरत को दबा के रखने से ही साबित होती है?
आज भी कितने घर है जहाँ सिर्फ औरत को ही उस के नारी होने के लिए समाज के तेजाब को झेलना पड़ता हैं।
संध्या चतुर्वेदी
मथुरा,उप