तेजाब की जलन
…तेजा़ब अटैक के परिप्रेक्ष्य में ,
तेजाब की जलन
^^^^^^^^^^^^^^^
एक दंश .एक चोट और
बस गूँजा हाहाकार
तुम्हारी अपुष्ट वासना की
हुई जब यूँ हार
प्यार,इश्क,मुहब्बत ,जज्बात
तेरे लिये थे महज शब्द
दो -चार,
अहसासों ,संवेदनाओं से परे
देखी तूने केवल देह
और उसकी अनावृत
गहराइयाँ…….
प्यास थी दमित, कुंठित
इच्छाओं की
जो अनबुझी रह कर
दे गई तुझे दंश
हीनता का ,हार का,पराजय का!!!
एक स्त्री होकर
मात्र एक देह होकर
कैसे कर सकती है इंकार
कैसे तोड सकती है
एक पुरुष का अहंकार???
कैसे जा सकती है अलग
घिनौनी वासना से दूर ..
ये दर्प,ये गर्व,ये स्वाभिमान
कैसे ठुकरा सकती है
पुरुष की कुत्सित कामना!!
भोगना होगा अब दंड
होना होगा सौंदर्य विहीन
नष्ट होगा अब ये शरीर
किया इंकार भोग्या होने से
नहीं अब बाहूपाश मिलेंगे
नेह कामना में डूबी गर्वित
तुझे कंटको के हार मिलेंगे।
सहना होगा अब तुझे
अस्वीकृति का तंज
रहना होगा समाज से
हमेशा के लिये बहिष्कृत ..।
©पाखी मनोरमा जैन