तृप्ति….
तृप्ति….
“तू” मुझमें है “मै” तुझमे हूं.
फिर कैसा “मै” और कैसी “तू”..?
जब “तू और मै” के मिलने से ही
तृप्ति “हम” का होना है…!
फिर क्यूँ न एक हो जाए “हम”
की न मै “मै’ रहूँ न तू “तू” रहे..!
विनोद सिन्हा-“सुदामा”
तृप्ति….
“तू” मुझमें है “मै” तुझमे हूं.
फिर कैसा “मै” और कैसी “तू”..?
जब “तू और मै” के मिलने से ही
तृप्ति “हम” का होना है…!
फिर क्यूँ न एक हो जाए “हम”
की न मै “मै’ रहूँ न तू “तू” रहे..!
विनोद सिन्हा-“सुदामा”