तू ही बता जिंदगी
सारी उम्र गुजार दी मैंने उसके जवाब देते देते,
अब तू ही बता अ जिंदगी!
उसका और कौनसा सवाल बाकी है।।
ख़्वाब-ए-हसरत तोड़ी उसने हमेशा से मेरी,
अब तू ही बता अ जिंदगी!
उसके लिये कौनसा ख़्याल बाकी है।।
ताउम्र बचती रही मैं मदिरा के इन प्यालों से,
अब तू ही बता अ जिंदगी!
कौनसा अब नशा-ए-शवाब बाकी है।।
गमों से पाला रहा है मेरा यहां हर कदम पर,
अब तू ही बता अ जिंदगी!
कौनसा अब खुशी-ए-ख्वाब बाकी है।।
रास ना आई उसे मेरी ये तरक्की की राह,
अब तू ही बता अ जिंदगी!
क्यों दर्द का उसका दिया निशां बाकी है।।
मौत ही दी उसने मेरी हर सांस पर मुझे,
अब तू ही बता अ जिंदगी!
क्यो “मलिक” को करना हलाल बाकी है।।
समझा फूल पर कांटे ही दिए मुझे उसने,
तू ही बता अ जिंदगी!
अब कौन सा और कमाल बाकी है।
उसका और कौनसा सवाल बाकी है।।