–कथनी और करनी एक हो–द्रुतविलम्बित छंद
द्रुतविलम्बित छंद की परिभाषा और कविता–
द्रुतविलम्बित छंद
———————-यह एक वर्णिक छंद है।इसमें चार चरण होते हैं।इस छंद के प्रत्येक चरण या पद में बारह वर्ण क्रमशः नगण,भगण-भगण एवं रगण के क्रम में होते हैं।
नगण+भगण+भगण+रगण
नगण=III
भगण=SII
भगण=SII
रगण=SIS
द्रुतविलम्बित छंद की कविता”कथनी और करनी एक हो”
सरल है कहना सबसे सुनो।
कठिन है करना सबसे सुनो।
चमन से बुन पुष्प सभी चलें,
कठिन है खिलना सबसे सुनो।
नियम हों पर और निभा सकें।
सुख मुझे दुख और लगा सकें।
चल रहा यह है हर और जी,
मनुजता किस हेतु दिखा सकें।
बहुत देख रहा सुन भी रहा।
शुभ सही कथनी पढ़ भी रहा।
अमल ये पर कौन करे यहाँ,
खुद न देख महान दिखा रहा।
चलन-चाल पवित्र रहे कहे।
कथन-हाल समित्र रहे कहे।
सबक ये सब हेतु खरा लगे,
पर स्वयं इस धार नहीं बहे।
खुद भला जग नूर भला दिखे।
खुद बला जग पूर बला दिखे।
डगर भाव समान लिए चलो।
सम रहो गर तो सम ही दिखे।
हृदय नेक रखो सब नेक हों।
समझ एक रखो सब एक हों।
गलत हो न कभी किसी लिए,
सजग यार यहाँ दिल देख हों।
सब विधान समान बदी टले।
सब रहें कर मान बदी टले।
असर एक रहे सम टेक भी,
सफ़र मस्त और सदी चले।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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