तू देश का सिपाही है तो मैं क़लम को हथियार
मेरी आज की कविता हमारी इंडियन आर्मी को मेरा सेल्यूट है सलाम उन नोजवानो को जो हमारे देश की रक्षा करते हुए अपनी जान की भी परवाह नहीं करते और हमारे शाहिद सैनिको को दिल्ली से कवि अशोक सपड़ा की क़लम से भावभीनी श्रद्धांजलि भर होगी
तू देश का सिपाही है तो मैं क़लम को हथियार बनाऊंगा
तेरे भारत माँ की जय बोल से मैं क़लम में धार लगाऊंगा i
तेरे ऋणी हम सदा रहेंगें तू सीमाओँ की रक्षा करना प्यारे
वादा तुझसे मेरा यह भाई मैं समाज को आईना दिखाऊंगा
तेरी शहादत के घाव कभी ना धो सकूँगा मैं उम्र भर साथी
पर गगन पर तेरी यश पताका मैं ऊंची से ऊँची फिराऊंगा
हम दोनों ही ठहरे एक पावन कोख की संतान मेरे भाई
तू देश का सिपाही है तो मैं क़लम का सिपाही कहलाऊंगा
तेरे पौरुष बल से हमारे भारत की विजय निश्चित ही होगी
तेरे सिंह जैसे पौरुष पर मैं दुश्मन को ललकार लगाऊंगा
तेरी संगती पाकर के मेरी प्यारी क़लम वीरों की जय बोली
तेरी वीरता के बखान पर मैं , वीरता के नए गीत बनाऊंगा
उछाल के पत्थर जो हाथों में आज़ादी बात करते तुझसे
इनकी बग़ावत की चिंगारी क़लम से मैं भी अब बुझाऊंगा
तू रखना सदा ही हिम को ताज अपनी भारत माता का
मैं तेरे रिस्ते घावों पर अपना चिर अकुल कण्ठ लगाऊंगा
यहाँ देश द्रोही घातक है तू सम्भल कर रहना मेरे साथी
हम दोनों एक ही डाली के फूल ये सब को मैं बताऊंगा
मैं क़लम का सिपाही ठहरा अशोक सपड़ा तुझसे कहता हूँ
एक इंच भूमि नहीं देंगे छक्के दुश्मन के तेरे संग छुड़ाऊंगा
अशोक सपड़ा की क़लम से दिल्ली से
सलाम हमारे देश की आर्मी को