तू क्या सोचता है
तू क्या सोचता है
ऐसे ही रहेगा सबकुछ हमेशा
कुछ बदलेगा नहीं
है अभी अंधेरा यहां
ये अंधेरा कभी छंटेगा नहीं
सूरज उगेगा नहीं
तू क्या सोचता है
है अभी नहीं वो पास तेरे
क्या तुझे वो मिलेगा नहीं
थोड़ा सब्र करना सीख
आएगा नहीं जबतक बसंत
फूल तबतक खिलेगा नहीं
तू क्या सोचता है
मुश्किल सफर है ये ज़िंदगी का
खुशी से कटेगा नहीं
देख इसको जीकर
दूसरों की खुशी में शामिल होकर
जन्नत से कम लगेगा नहीं
तू क्या सोचता है
हमेशा झूठ ही जीतेगा यहां पर
सच कभी जीत नहीं पाएगा
देख लेना जीत आखिर में
सच की ही होती है इसमें कोई संशय नहीं
झूठ जल्दी ही हांफ जायेगा
तू क्या सोचता है
तू ही चला रहा है ये संसार
तेरे बिन रुक जायेगा सब
कितने आए और चले गए
किसी के जाने से रुक जाए जग
ऐसा जग में हुआ है कब
तू क्या सोचता है
दूसरों के सामने तेरी कोई हैसियत नहीं
तू उनका मुकाबला कर पाएगा नहीं
मेहनत करेगा तो तू उनसे कम नहीं
जीत जायेगा, पहुंचेगा तू भी वहीं,
लेकिन सोच नहीं बदलेगा, तो हार जाएगा वहीं
तू क्या सोचता है
बस सोचकर ही पार कर देगा
तू ये तेज़ी से बहता हुआ दरिया
कूदेगा तू इसमें जब
तैरकर ही पार कर पाएगा तू ये दरिया
और बनेगा प्रेरणा का ज़रिया।