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22 May 2017 · 1 min read

तुम

तुम्हारे सुबह के मैसेज की उम्मीद में
अब आंख नहीं खुलती मेरी
ना ही मोमबत्तियों और गुलाब से सजी
टेबल होती है रात के खाने की
अब करवट नहीं बदलता मैं बिस्तर पर
जानने को कि तुम जगी हुई तो नहीं
जब भी तुम मुझे
ढलते सूरज की तस्वीर भेजती थी
याद तुम अपनी दिला जाती थी
और वो आंखों से पानी आ जाने तक हंसना
साथ मिलकर सोफ़े पे मैग्गी खाना
जब मैं परेशान होता था और
सुबह 4 बजे तुम्हें फ़ोन करता था
और तुम्हारा मुझे प्यार से समझाना
तुम्हें भूल जाने के ख़याल से ही
मुझे तुमसे और प्यार हो जाता है

–प्रतीक

Language: Hindi
328 Views
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