एक नया अध्याय लिखूं
एक नया अध्याय लिखूं ,तेरा तुझसा पर्याय लिखूं।
मिलन विरह से ऊपर उठ, मुक्त छंद दो चार लिखूं ।।
स्तुतियों में जिसका वर्णन है, श्लोकों में जिसका वंदन है ।
स्वाध्याय के कुछ अंशों में, मन्त्र ज्ञान का सार लिखूं ।।
देवी-देव, ध्यान नित करते, भू नभ पवन में वही महकते |
संतों की वाणी नित गाती, वो ऋचा वेद आभार लिखूं।।
क्षर-अक्षर निहित हैं जिसमें, शब्द व्याकरण हित है जिसमें
असंख्य विधाओं का मूल जो, उसी का मैं आकार लिखूं
वाणी मूक हो जायेगी, महिमा नहीं कह पाएगी |
सागर नीर से वर्णित, वसुधा सकल का भार लिखूं।।
होकर भी कहीं नहीं है, फिर भी सर्वत्र वही
सत्य सनातन शाश्वत, क्षितिज के पार लिखूं।।
स्वयं कला, कलाधर कहलाता, नीलकंठ विषधर बन जाता
वो कैवल्य बोध तत्व ज्ञान, उस राम कृष्ण का आराध्य लिखूं।।
अवध की मर्यादा का निर्वाहन, या बृज की राधा बृषवाहन
कुरुक्षेत्र पार्थ और गीता ज्ञान, सरल सहज लय धार लिखूं ।।
लिखूं मर्म महा रास रहस्य का, त्याग महत्व ब्रह्मचर्य का
योग तंत्र साधना आत्मा उन्नति, जाग्रति को लगातार लिखूं ।।
दर्शन चिंतन मनन और मंथन, भक्ति भक्त का स्नेह स्पंदन
पावन पुनीत तेरा अभिनंदन, श्री चरण वंदन की पुकार लिखूं।।
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