तुम
ओस से धुली हुई‚फूल सी खिली हुुई
कनक सा रँग सुन्दरि।
ओठ आग सा दहक‚आँख गीत सा महक
तन बदन पुलक रहा।
छलक रही सुगँध उस बतास में
छू चला जो लट‚कपोल छू चला।
अँग ज्यों तराश कर‚मन में तेरे प्यास भर
भर गगन का गान वो किलक रहा।
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ओस से धुली हुई‚फूल सी खिली हुुई
कनक सा रँग सुन्दरि।
ओठ आग सा दहक‚आँख गीत सा महक
तन बदन पुलक रहा।
छलक रही सुगँध उस बतास में
छू चला जो लट‚कपोल छू चला।
अँग ज्यों तराश कर‚मन में तेरे प्यास भर
भर गगन का गान वो किलक रहा।
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